गुरुवार, 14 नवंबर 2019

गुरु नानक देव जी का मानवतावादी दर्शन (Humanist Philosophy of Shri Guru Nanak Devji )

डॉ देशराज सिरसवाल 


गुरु नानक देवजी सिखों के पहले गुरु थे। अंधविश्वास और आडंबरों के कट्टर विरोधी गुरु नानक जी का जन्मदिन कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है हालांकि उनका जन्म 15 अप्रैल 1469 को हुआ था। गुरु नानक जी पंजाब के तलवंडी नामक स्थान पर एक किसान के घर जन्मे थे। तलवंडी जोकि पाकिस्तान के लाहौर से 30 मील पश्चिम में स्थित है, गुरु नानक का नाम साथ जुड़ने के बाद आगे चलकर ननकाना कहलाया। इतिहास के अनुसार वे सम्पूर्ण विश्व में भ्रमण करते रहे और लोगों को आडम्बरभ्रम एवं अज्ञान से दूर कर उनका मार्गदर्शन करते रहे ताकि उनका परिचय ‘आत्मा’ और परमात्मा से हो सके एवं सर्वत्र प्रेम और भाईचारा प्रसारित हो सके, मानव और उनका समाज स्वस्थ रह सकें । उनके जीवन से जुड़े असंख्य प्रेरक प्रसंग हैं जो इन तथ्यों की सम्पूर्ण पुष्टि करते हैं इस शोध-पत्र का मुख्य विषय गुरु नानक देव जी के मानवतावादी दर्शन का अध्ययन करना है ।

गुरु नानक जी के उपदेश
गुरु नानक जी ने अपने अनुयायियों को दस उपदेश दिए जो कि सदैव प्रासंगिक बने रहेंगे। गुरु नानक जी की शिक्षा का मूल निचोड़ यही है कि परमात्मा एक, अनन्त, सर्वशक्तिमान और सत्य है। वह सर्वत्र व्याप्त है। मूर्ति−पूजा आदि निरर्थक है। नाम−स्मरण सर्वोपरि तत्त्व है और नाम गुरु के द्वारा ही प्राप्त होता है। गुरु नानक की वाणी भक्ति, ज्ञान और वैराग्य से ओत−प्रोत है। उन्होंने अपने अनुयायियों को जीवन की दस शिक्षाएं दीं जो इस प्रकार हैं− 
1. ईश्वर एक है। 
2. सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो। 
3. ईश्वर सब जगह और प्राणी मात्र में मौजूद है। 
4. ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता। 
5. ईमानदारी से और मेहनत कर के उदरपूर्ति करनी चाहिए। 
6. बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएं। 
7. सदैव प्रसन्न रहना चाहिए। ईश्वर से सदा अपने लिए क्षमा मांगनी चाहिए। 
8. मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से ज़रूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए। 
9. सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं। 
10. भोजन शरीर को जि़ंदा रखने के लिए ज़रूरी है पर लोभ−लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है।1
गुरू नानक सत्य के पुजारी थे और उन्होंने धर्म  का विवेचन करने के लिए जो कुछ कहा है, वह आडबंरयुक्त वचनों और वाक्छल से रहित  है। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि ‘‘धर्म  के विषय में लंबी- चौड़ी बातें करने से कोई लाभ नहीं। सिद्धांत वही सच्चा है और ठीक माना जा सकता है, जो व्यवहार में लाया जा सके।’’2  चाहे कोई पूजा- पाठ, जप- तप योगादि कितना भी करे, पर नानक जी की दृष्टि  में यदि  वह लोगों का उपचार- पीड़ि़तों की सेवा नहीं करता तो वह सब महत्त्वहीन है। वे तिब्बत  तक गये थे और हिमालय  के दुगर्म प्रदेशों में पहुँचकर सिद्ध  योगियों  से भेंट की थी। उन सिद्धों  से भी उन्होंने यही कहा था कि ‘‘आप तो यहाँ मोक्ष की साधना में लीन है और वहाँ संसार की दशा यह है कि समय के समान घातक हो रहा है। शासक गण कसाई बन गए हैं। धर्म  पंख लगाकर उड़ गया है, चारों तरफ झूँठ की काली रात छाई हुई है, उसमें सच्चाई का चंद्रमा कहीं दिखाई नहीं देता है।3’’ सिख धर्म में सामाजिक जीवन मुल्यों पर बहुत बल दिया गया है. जैसा की गुरू नानक देब जी कहते हैं की “पहाड़ों , गुफा  कन्दराओं में जाकर अपने आपको (आत्म) खोजने की जरूरत नहीं”. केवल नेक कर्मों जैसे जरुरतमन्द की सहायता और समाज सेवा से ही व्यक्ति ओने आपको पहचान सकता है. व्यक्ति केवल परोपकार के द्वारा ही इंसानी भाईचारे को विकसित कर सकता है.     
सिख धर्म में परोपकार के नैतिक नियम को इन्सान का महत्वपूर्ण सद्गुण माना गया है इसे सिख नीतिशास्त्र का स्तम्भ माना गया है . परोपकार यानि दूसरों की भलाई . यह दो शब्दों के मेल से बना है पर यानि दूसरा , उप , उपसर्ग है कर यानि कि करना . पर +उप+कार= परोपकार अर्थात दूसरों की भलाई . इसके भी दो पक्ष हैं. दूसरों के प्रति की गई शारीरिक सेवा एवम अध्यात्मिक सेवा. गुरु नानक देव जी कहते हैं की “परोपकार ही सम्पूर्ण शिक्षा का सार है.”4 नानक जी मानते थे कि भलाई, सज्जनता आदि  का गुण मनुष्य में स्वभावतः होता है। पर वह अनुकूल स्थिति  न पाने के कारण छिपा  रहता है। सच्चे संतों, सद्गुरू का कत्तर्व्य है कि वह इस भलाई के तत्त्व से मनुष्य को पिरिचत करायें और उसके बढ़ाने में मदद करें। यही गुरू का सबसे बड़ा उपकार शिष्य  पर होता है, जिसके लिए  वह गुरू को भगवान् के तुल्य समझकर पूजता है। हम कह सकते हैं कि जात- पात के बंधनों, खान- पान में चौका- चूल्हे के नियमों  और छुआछूत की बीमारी को सबसे अधिक  पंजाब में ही त्यागा गया है। लंगर की प्रथा भी श्रद्धालुओं को अपनी मेहनत की कमाई से मानवता की सेवा में लगाने को प्रेरित करती है. दान और कर सेवा सिख धर्म में भौतिक एवम शारीरिक सेवा का एक उज्जवल पक्ष माना गया है.6
दक्षिण भारत में तो छूत- अछूत का प्रश्न आज भी एक समस्या के रूप में मौजूद है और वहाँ अब भी सामाजिक  कारणों से अछूतों के मारे जाने के समाचार आते रहते हैं। उत्तर- प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान आदि हिंदी  भाषी प्रांतों में स्वामी दयानंद और महात्मा गाँधी के प्रचार कार्य  के फलस्वरूप इस प्रकार के भेद- भाव की तीव्रता कम हो गई है और यद्यपि प्रत्यक्ष रूप में स्वीकार तो नहीं किया  जाता, पर व्यवहार में अछूतों को बहुत कुछ सुविधाएँ  मिल  गई हैं। बंगाल में सौ- डढ़े सौ वर्ष पूर्व  ब्रह्म- समाज के प्रचार ने परिस्थिति  को बहुत कुछ बदल दिया है। इस प्रकार समाज में से विषमता  को मिटाकर  समता तथा एकीकरण का जो महान् कार्य  गुरू नानक ने उठाया था, वह आज फलता- फूलता नजर आ रहा है, यह कम संतोष की बात नहीं है।7 
मोक्ष प्राप्ति के लिए भी गुरुओं ने परोपकार पर ही बल दिया है. बौद्धमत की तरह ही सिख धर्म में भी कोई एक व्यक्ति निजी मोक्ष ले लिए प्रयत्न नहीं करता जैसे की बौधिसत्व अपने कर्मों द्वारा प्रकाश प्राप्त कर असंख्य लोगों के लिए निर्वाण का मार्ग खोल देता है. गुरु नानक देव जी के विचार में “सहज” भाव हुकुम की निहित स्वीकृति है और यह सिख धर्म का मूल सिद्धांत है जोकि वह रहस्यवादी अवस्था है जिसमें अकालपुरख की इच्छा को स्वीकार कर लिया है. इस तरह यह स=इन्सान द्वारा प्राप्त करने वाली उच्चता अध्यात्मिक अवस्था है. गुरू नानक देव जी के अनुसार, “सहज शब्द का अर्थ है सम्पूर्ण संतुष्टि. जैसे धीमी आंच पर पकाया गया व्यंजन अपनी खुशबु को धारण किये रहता है इसी तरह मन और शरीर को स्व अनुशासन में धीरे धीरे लाना व्यक्ति के भीतर छुपे शाश्वत शुभ को उजागर करना है.
नानक जी भगवान् के विराट् रूप के उपासक थे, इसीलिए उन्हें संसार के सब पदार्थ और प्राणी भगवान् के रूप में ही दिखाई पड़ते थे। जब हम सब उसी एक अनादि- तत्त्व के अंश हैं तो आपस में लड़ाई- झगड़ा, ईष्यार्- द्वेष कैसाउन्होने एक ऐसा संगठन बनाने का निश्चय किया, जिसमें धर्म को व्यापार की चीज न बनाया जाये और जिसमें धार्मिकता और जातीयता की दृष्टि  से किसी को छोटा- बड़ा न माना जाय। इसीलिए  उन्होंने पृथक्- पृथक् पूजा- उपासना के स्थान पर सामुदयिक उपासना का प्रचलन किया।  उन्होंने अपने इस सिद्धांत  को वव्यवहारिक  रूप देने का दूसरा कार्य  यह किया की  सब लोगों का खाना एक साथ बने और सब एक ही पंगत में बैठकर भोजन करें। गुरू नानक ने अपने यहाँ लंगर- प्रथा प्रचिलत करके इसकी जड़ ही काट दी। इस तरह हम देखते है की मानववाद की जो अव्धारानाएं हमें वर्तमान में मिलती है वैसा मानववाद गुरु नानक देव जी के दर्शन का आधार रहा है.

संदर्भ :
  1. 1. शुभा दुबे, “गुरु नानक देव जी के यह दस उपदेश अपनाएँ, जीवन सफल बनाएँ” ,  नवंबर 3,2017, https://www.prabhasakshi.com/articles-on-gods/adopt-ten-teachings-of-guru-nanak-dev-make-life-successful
  2. 2. गोपाल मिश्रा, श्री गुरु नानक देव के 10 अनमोल उपदेश, NOVEMBER 24, 2018, https://www.achhikhabar.com/2012/11/23/shree-guru-nanak-dev-ji-life-in-hindi/
  3. 3. वही.
  4. 4. डॉ शिवानी शर्मा , सिख नितिशास्त्र, फिलोसोफी, युसोल, पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़, 2011, पृष्ठ 30.
  5. 5. गुरू नानक की दार्शनिक  विचारधारा - गुरु नानक देव :: (All World Gayatri Pariwar), http://literature.awgp.org/book/guru_nanak_dev/v2.1
  6. 6. डॉ शिवानी शर्मा , सिख नितिशास्त्र, पृष्ठ 32.
  7. 7. गुरू नानक की दार्शनिक  विचारधारा, http://literature.awgp.org/book/guru_nanak_dev/v2.1